Soybean best variety RVS 2001-4 – किसानों के लिए पीले सोने के नाम से प्रसिद्ध सोयाबीन की फसल पिछले कई सालों से या तो ज्यादा बारिश से गल जाती है या कम बरसात के कारण ख़राब हो जाती है। सोयाबीन मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बोयी जाती है। और पिछले सालो से लगातार सोयाबीन की फसल ख़राब होने से किसानों की आर्थिक स्थिति में गिरावट आयी है।
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सोयाबीन आरवीएस 2001-4 के बारे में :-
सोयाबीन RVS 2001-4 की विशेषताएँ:
- इसके पौधे 50 से 60 सेमी. के ऊचाई के होते है और तीन चार शाखाओं में होता हे। इसमें लगने वाले फूल सफ़ेद रंग के और फली चकनी तथा बीज गहरे पीले रंग के होते है।
- ये फसल कम पानी में न सूखेगी और ज्यादा बरसात होने पर ख़राब होगी।
- इस पर कीड़ों का असर भी कम होगा।
- अन्य किस्म की तुलना में 15 प्रतिशत पैदावार में बढ़ोतरी होगी।
- दूसरी किस्में जैसे 9560, 9305, जे एस 335 लगभग 100 या उससे अधिक दिनों में पक कर तैयार होती है। वही ये नई किस्म RVS 2001-4 90 दिनों में पक कर तैयार हो जाएगी।
- अन्य किस्मों की पैदावार सामान्य प्रति बीघे 4 से 5 क्विंटल होती हे वही ये 5 से 6 क्विंटल अधिक पैदावार होती है।
- आरएसवीकिस्म में ज्यादा बरसात से इसके पोधो की जेड गलेगी नही
- ओर यदि बरसात कम हुई तो भी इसके पोधे जल्दी नही सुखेगे।
- खेत में पानी के भराव और सूखे में में भी पौधा संतुलित रहेगा।
- और इल्ली के प्रकोप का भी असर कम होगा।
- फसल की अवधि लगभग 92-95 दिन होती है।
- औसतन उत्पादन 25 क्विंटल प्रति हेक्टर
- सीधा फैलाव वाला पौधा का रंग ब्राउन (भूरा), फूलो का रंग सफ़ेद होता है। रूहेदार पौधा होता है। नाभि का कलर लाल होता है। जल
- भराव या ठहराव वाली जगह भी अच्छा रिजल्ट मिला है।
- तेल की मात्रा 21.5 प्रतिशत। प्रोटीन 42 प्रतिशत, और मजबूत जड़ तंत्र होने से जड़ सड़न, एवं पीला मोजक रोग, फलिया रोयेदार होने से गर्डल बीटल, सेमीलूपर आदि के लिए सहनशील है।
- फलियो के चटकने की समस्या नहीं है ।
सोयाबीन आरएसवी 2001-4 को मान्यता
भारत में कृषि विज्ञानिकों के द्वारा रिसर्च कर के नई नई किस्मों बीज तैयार करने के बाद उसे पूरी रिपोर्ट के साथ उसे केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की सेंट्रल सीड रिलीज कमेटी को भेजा जाता है।
वहां पर बीज की पूरी वैज्ञानिक जाँच करने के बाद उसे अधिसूचित किया जाता है।
फिलहाल इस किस्म को सिर्फ प्रयोग के लिये किसानो को उपलब्ध कराया जायेगा।
इस किस्म के लिए किसान सीहोर ग्वालियर के एग्रीकल्चर कॉलेज और अपने जिले के कृषि अनुसंधान केंद्र और कृषि विभाग में सम्पर्क कर सकते है
सोयाबीन की इस वैराईटी के आने के बाद किसानों को सोयाबीन में होने वाले नुकसान से राहत मिल सकती है।
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MY KISAN DOST
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