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Afim ki kheti काला सोना यानि अफ़ीम की फसल किसानों के लिए वरदान या अभिश्राप
हेल्लो दोस्तों ये एक guest post है। आप भी अपनी मन की बात।यहाँ भेज सकते है।
अफ़ीम फसल |
Afim (Opium) ki kheti kisano ke liye
यह साल अफ़ीम काश्तकार को लिए खून के आँसू रुला रहा है।
अफ़ीम की खेती करने वाला किसान।इस साल ब्रिटिश साम्राज्य में जो किसानों की हालत थी वैसी हालत हो गयी है। अफ़ीम की फसल की खेती करना मतलब एक नवजात शिशु का पालन करने से भी ज्यादा मेहनती कार्य है।
कुछ दिनों पहले आपने अखबार टीवी और न्यूज़ चैनलों पर नीमच,मंदसौर,चित्तौड़गढ़ के किसानों के द्वारा नीमच नारकोटिक्स कार्यालय का घेराव किया गया वो खबर पढ़ी होगी। जिसमे हजारों की तादाद में किसान एकत्र हुए और अपनी मागो को लेकर ज्ञापन दिया।
मेरे बहुत से मित्रों को ने मुझसे पूछा की पूरा माजरा क्या है। आज में उन्हें इस लेख के माध्यम से बता रहा हू।
कैसे होती है अफीम की खेती
अफ़ीम की खेती में किसानों की बहुत ज्यादा लागत लगती है। उसे 20 आरी की अफ़ीम के लिए 3 और 4 टन देसी खाद् डालना पड़ता है। खेत की 2 से 4 बार अच्छी जुताई करनी पड़ती हे।फिर मिट्टी को समतल करने के लिए पाटा फेरा जाता है। 2 से 3 हजार के बीज डालना पड़ता है। हर दूसरे तीसरे दिन सिंचाई करनी पड़ती है। फिर उसमे स्वस्थ पोधों की छंटाई के लिए हज़ारों रूपये के मजदूर लगते है। साथ में नील गाय और आवारा पशुओं से सुरक्षा के लिए काटेदार बाउंड्री में 50 हजार का ख़र्चा करना पड़ता है।
अफ़ीम की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए दवाई का स्प्रे नही कर सकते हें इसलिए मज़दूरों से निदाई करवाना पड़ती है।फसल में डोडे लगने तक हजारों रूपये की रासायनिक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है। किसान के एक सदस्य को हमेशा 24 घंटे खेत पर रख वाली करने के लिए रहना पड़ता है।
लाखों रूपये का ख़र्चा करने के बाद मौसम और प्रक्रति ने साथ न दिया तो सारी करनी धरी के धरी रह जाती है। इस वर्ष भी अफ़ीम किसानों के साथ ऐसा ही हुआ। अफ़ीम की फसल में अचानक पीलापन आया जिसका वीडियो मैंने youtube channel पर ● अफीम की फसल पर आया अचानक पीलापन का रोगडाला था। इस प्रकार के रोग ने अफ़ीम किसानों को और ज्यादा दवाइयों के प्रयोग करने पर विवश कर दिया और लगातार दवाइयों के प्रयोग करने पर भी किसान अपनी फसल में सुधार ना ला सके।फलस्वरूप गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष लागत और भी अधिक हो गई
सरकार ने क्या नोटिस जारी किया ?
इतना ख़र्चा करने के बाद । शासन का नोटिस आया की किसान अपने खर्चे से फसल को नष्ट करने के लिए खेतो में रोटेवेटर चलाये। किसानों की एक आस बसी थी की वो पोस्ता दाना ले पायेंगे लेकिन इस आदेश ने उनकी कमर तोड़ दी।इसी को लेकर किसानों ने हंगामा किया और सरकार को ज्ञापन दिया।
क्यों की यदि रोटेवेटर चलता है। तो जो पोस्ता दाना डोडो में है वो खेत की मिट्ठी में मिल जाता है। और बरसात के बाद खेतो में असख्य मात्रा में उग जाता है। जिससे निदाई की श्रम लागत और ज्यादा बड जाती है।इसी बात को लेकर किसानो ने जो ज्ञापन दिया फिर जा कर सरकार ने आदेश दिए की किसान पोस्ता दाना ले सकेगा।
यह पोस्ट भी जरुर पढ़े।
1>>बिना खेत और मिट्टी के खेती का आधुनिक तरीका।
2>>जहरीले जानवर के काटने पर क्या करे। देसी तरीका
3>>नील गाय रोजड़ो से अफ़ीम को केसे बचाए।
4>>बोरवेल के लिए ज़मीन में पानी कहा मिलेगा।
अफसरों की मनमानी
लेकिन फिर भी किसानों को अधिकारियों के खेत पर आ कर मुआयना करने का इंतजार करना पड़ रहा है। और रात भर जाग के रखवाली करनी पड़ रही है क्यों की नीमच के आसपास के इलाकों में आये दिन डोडा चोरी हो रही हे। रात में रखवाली करने के लिए सोये किसानों पर अचानक 15 से 20 चोर आ कर दबोच लेते है और डोडे तोड़ कर भागने के साथ साथ किसानों के हाथ पैर भी तोड़ के जाते हें। इसे में अफ़ीम काश्तकार अपने जीवन तक दाव पर लगा कर खेती करता है।
https://www.youtube.com/watch?v=-xNVx30NHsU
और अंत में उसे यदि अच्छे मुनाफ़े की बजाय अपने किये पर पानी फिरता नजर आये तो घर में एसा माहौल छा जाता है जैसे घर का कोई सदस्य मर गया हो
जहा हम एक तरफ नेताओं को देश को खोकला करने के लिए कोसते रहते है वही इस वर्ष नारकोटिक्स विभाग की इस अफसरशाही ने जनता को यह भी जतला दिया की इन जनता के प्रतिनिधियों का होना कितना आवश्यक है
इन जनप्रतिनिधियों के इतने दबाव के बाद नारकोटिक्स विभाग को झुकना तो पडा किन्तु फिर भी इनकी अफसरशाही साफ़ नजर आ रही है
पुरानी कहावत है की ज़मीन पर गिरा गोबर भी धुल मिट्टी साथ लेकर ही उठता है उसी तर्ज पर ये नारकोटिक्स फिर भी किसानों पर आर्थिक बोझ डालने से बाज नहीं आई और 300 से 400 रूपये प्रति आरी के सिर्फ इस नाम पर वसूल रहे है की हम आपकी फसल में रोटावेटर नही चलाएंगे जबकि यह आदेश हमारे जनता प्रतिनिधियों के दबाव डालने पर नारकोटिक्स कमिशनर द्वारा दिया गया है की किसान अपना पोस्ता दाना ले सकता है
Conclusion:
अंततः मेरे इस लेख का उद्देश्य मात्र यही है की
अब समय आ गया है जनता को अपनी ताकत दिखाने का
यदि सारे किसान एकजुट होकर यह एलान भी कर देते की हम तो अफ़ीम में चीरा भी लगायेंगे और जो औसत मिलेगी वही देंगे तो भी इन अफसरशाही का झंडा लहरा ने वालो को झुकना ही पड़ता
अब किसानों को अपनी ताकत दिखानी है
मेरे इस लेख पर अपनी राय अवश्य दे।
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आपका अपना ek kisan dost
चरण सिंह जाट (प्रगतिशील किसान) |
बहुत अच्छा ब्लॉग बनाया है आपने सर मेरे पास भी कुछ ब्लॉग है http://www.populartips4u.com, http://www.hdonline.in, और एक है http://www.w3university.in कृपया देख कर बताएं क्या में ठीक से काम कर रहा हूँ
श्रवण जी मेने आपके तीनो ब्लाग देखे। मुझे बहुत अच्छे लगे । greet sir g और सबसे best hd online लगा । आपकी महनत काबिले तारीफ है।