किसान दोस्तो आज हम जानेंगे, अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha Farming) के बारे में। अश्वगंधा एक औषधीय पोधा है। जो की आयुर्वेदिक गुणकारी होता है। जिसकी खेती करके आप अच्छा मुनाफा कमा सकते है।
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अश्वगंधा की खेती की जानकारी / अश्वगंधा की खेती कैसे करें? Ashwagandha Farming
Ashwagandha Farming अश्वगंधा की खेती एक महत्वूर्ण खेती मानी जाती हैं। जो कि ठन्डे प्रदेश को छोड़कर भारत के कई हिस्सो में उगाई जाने वाली फसल है।
मुख्य रूप से इसकी खेती मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग में मंदसौर, नीमच, मनासा, जावद, भानपुरा तहसील में व पास के राज्य राजस्थान के नांगौर जिले में होती है।
अश्वगंधा की खेती किस महीने में की जाती है?
Ashwagandha की खेती के लिए बुवाई जुलाई से सितंबर महीने के लिए उपयुक्त होती हैं ।
अश्वगंधा की खेती के लिए मोसम ओर जलवायू कैसी होनी चाहिए ?
इसकी खेती शुष्क समशीतोष्ण जलवायु में अच्छे से जा सकती है. जमीन में अच्छी नमी भी होनी चाहिए और शुष्क मौसम भी होना चाहिए. अश्वगंधा को खरीफ के मौसम में देर से लगाते हैं।
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खेत की तैयारी कैसे करते है ?
सबसे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से होनी चाहिए, इसके बाद कल्टीवेटर से दो जुताई करें. हर जुताई के बाद पाटा लगा देना चाहिए है. ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके.लेकिन किसान बुवाई से पहले 15 किलोग्राम नत्रजन और 15 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला लें. इससे फसल अच्छी होती है।
अश्वगंधा की खेती में बीज की मात्रा एवं बीज उपचार।
Ashwagandha की खेती के लिए एक हेक्टेयर में 5से 7 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बोने से पहले बीजों को थीरम या डाइथेन एम-45 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने से अकुंर बीज जनित रोगों से सुरक्षित रहते है। बीज 8-10 दिन में अंकुरित हो जाते है।
अश्वगंधा की उपज के लिए उन्नत किस्मों का चयन करे।
इसकी खेती करने से पहले किसान भाइयों को मुख्य उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए जिससे फसल की अधिक उपज होती है अश्वगंधा की कुछ उन्नत किस्में जैसे डब्लू एस-20 ( जवाहर) 2 जवाहर अश्वगंधा-134 आदि उन्नत किस्में है।
अश्वगंधा की खेती में सिंचाई कैसे करें?
नियमित समय से वर्षा होने पर फसल की सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई अवश्य करें।
अश्वगंधा में खाद उर्वरक ओर निदाई गुड़ाई केसे करे
Ashwagandha अश्वगंधा की फसल में किसी प्रकार की रासायनिक खाद नही डालनी चाहिए। क्योंकि इसका प्रयोग औषधि में किया जाता है। लेकिन बुआई से पहले 15 किलो नाईट्रोजन प्रति हैक्टर डालने से अधिक ऊपज होती है। बुआई के 20-25 दिन बाद पौधों की दूरी ठीक कर देनी चाहिए। खेत में समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। अश्वगंधा जड़ वाली फसल है इसलिए समय-समय पर निराई-गुडाई करते रहने से जड़ को हवा मिलती रहती है जिससे उपज अच्छी होती है।
अश्वगंधा में लगने वाले रोग
Ashwagandha पर रोग व कीटों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। कभी-कभी माहू कीट तथा पूर्णझुलसा रोग से फसल प्रभावित होती है। इसके लिए मोनोक्रोटोफास का डाययेन एम- 45, तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बुवाई के 30 दिन के अंदर छिड़काव करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव करें।
अश्वगंधा की फसल की खुदाई सुखाई और भंडारण कैसे करें
अश्वगंधा की फसल 135 से 150 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधे की पत्तियां व फल जब पीले हो जाए तो फसल खुदाई के लिए तैयार होती है। पूरे पौधे को जड़ समेत उखाड़ लेना चाहिए। जड़ें कटने न पाए इसलिए पौधों को उचित गहराई तक खोद लेना चाहिए। बाद में जड़ों को पौधो से काट कर पानी से धो लेना चाहिए व धूप में सूखने दें
और जड़ों को निम्न श्रेणियों में अलग-अलग कर ले और जड़ो को बोरों में भरकर हवादार जगह पर भडांरण करें। भडांरण की जगह दीमक रहित होनी चाहिए।
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दोस्तों, इस पोस्ट में मैने कोशिस करी है कि, मैं अश्वगंधा की खेती से जुडी सभी जानकारी आप तक शयेर कर सकूं। अगर इसके अलावा और कोई जानकारी छूट गयी है तो, कृपया कमेंट में जरूर लिखें और आपके सवाल भी सादर आमंत्रिक है, जरूर पूछें।
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